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देवता: पवमानः सोमः ऋषि: त्रितः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः

ति॒स्रो वाच॒ उदी॑रते॒ गावो॑ मिमन्ति धे॒नव॑: । हरि॑रेति॒ कनि॑क्रदत् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tisro vāca ud īrate gāvo mimanti dhenavaḥ | harir eti kanikradat ||

पद पाठ

ति॒स्रः । वाचः॑ । उत् । ई॒र॒ते॒ । गावः॑ । मि॒म॒न्ति॒ । धे॒नवः॑ । हरिः॑ । ए॒ति॒ । कनि॑क्रदत् ॥ ९.३३.४

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:33» मन्त्र:4 | अष्टक:6» अध्याय:8» वर्ग:23» मन्त्र:4 | मण्डल:9» अनुवाक:2» मन्त्र:4


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (धेनवः गावः) इन्द्रियवृत्तियें (तिस्रः वाचः उदीरते मिमन्ति) तीनों वाणियों को उच्चारण करती हुयी परमात्मा का साक्षात्कार कराती हैं (हरिः) और वह परमात्मा (कनिक्रदत् एति) गर्जता हुआ उनके ज्ञान का विषय होता है ॥४॥
भावार्थभाषाः - जो लोग वैदिक सूक्तों द्वारा वर्णित परमात्मा के स्वरूप को अपने ध्यान में लाना चाहते हैं, वे भली-भाँति परमात्मा का साक्षात्कार करते हैं। तात्पर्य यह है कि परमात्मा शब्दगम्य है, तर्कों से उसका साक्षात्कार नहीं होता, क्योंकि तर्क की कोई आस्था नहीं। प्रथम के तर्क को द्वितीय, जिसकी अधिक बुद्धि है, काट देता है। द्वितीय के तर्क को तृतीय, तृतीय के तर्क को चतुर्थ। वेद पूर्ण पुरुष का ज्ञान है, इसलिये उसमें दोष नहीं ॥४॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (धेनवः गावः) इन्द्रियवृत्तयः (तिस्रः वाचः उदीरते मिमन्ति) तिस्रोः वाचः समुच्चारयन्त्यः परमात्मानं प्रापयन्ति (हरिः) स च परमात्मा (कनिक्रदत् एति) गर्जन् तेषां ज्ञानविषयो भवति ॥४॥